BA Semester-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2632
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत

प्रश्न- किरातार्जुनीयम् महाकाव्य के प्रथम सर्ग का संक्षिप्त कथानक प्रस्तुत कीजिए।

 

उत्तर-

महाभारत के बनपर्व की कथा पर आश्रित, महाकवि भारवि के द्वारा 18 सर्गों में विरचित बृहत्त्रयी के अन्तर्गत सुप्रतिष्ठित 'किरातार्जुनीयम्' महाकाव्य के प्रथम सर्ग की कथावस्तु का सारांश प्रस्तुत करते हुए हम उसे तीन विन्यासों के अन्तर्गत विभक्त करके देख सकते हैं। प्रथम विन्यास मड्गलार्थक 'श्रिय' पद के प्रयोग से प्रारम्भ होता है। इसके अन्तर्गत महाकवि भारवि ने इस तथ्य का वर्णन किया है वृत्तान्त को कि द्यूतक्रीडा में पराजित और वनवास भोगते हुए युधिष्ठिर ने दुर्योधन की राजव्यवस्था सम्बन्धी जानने के लिए एक बनेचर को भेजा था, जो सम्पूर्ण वृत्तान्त को जान करके उनके पास आता है तथा शिष्टाचार के उपरान्त शत्रु दुर्योधन के वृत्तान्त का निवेदन करते हुए विचलित नहीं होता है। एक सत्यनिष्ठ तथा हितैषी के रूप में युधिष्ठिर एवं पाण्डवों को अत्यन्त विचलित कर देने वाली दुर्योधन की राजव्यवस्था को यथार्थतः वर्णित करते हुए वह गुप्तचर सर्वप्रथम राजा और उसके अमात्य के कर्त्तव्यों पर प्रकाश डालता है। उसका कथन है जहाँ अप्रिय होते हुए भी सत्य का निवेदन करना अच्छे अमात्य का परम धर्म है तथा गुरुरूपी मंत्री वाले राजाओ को प्रवञ्चित न करना उसका परम कर्त्तव्य है, वहीं अविचलित तथा शान्त चित्त से उस हितैषी की बात को हृदयङ्गम करना, राजा का भी परम धर्म होता है। राजा और अमात्य के मध्य इसी सौमनस्य से राज्य अत्यन्त वैभवसम्पन्न होता है।

राजनीति कूटनीति और धर्म के महामनीषी युधिष्ठिर की सड्गति के प्रभाव के कारण एक मूढमति वनेचर भी दुर्योधन की राजनीति कूटनीति और उसकी प्रजापालन पद्धति को समझ सका, यह गौरव प्रदान करते हुए वनेचर किरातार्जुनीयम् के प्रथम सर्ग का द्वितीय विन्यास पारम्भ करता है। उसका कथन है कि यद्यपि दुर्योधन ने छलपूर्वक राजसिंहासन प्राप्त कर लिया है, फिर भी अज्ञातवास पूरा होते ही वह राज्य को यदि पुनः वापस नहीं करता तो उसे परास्त करके पाण्डवों के द्वारा कुरु राज्य छीन लिया जायेगा. इस भय से वह सतत् सशङ्कित रहता है। आततायी दुराचारी और अधर्मी दुर्योधन लोभ में कुरु प्रदेश की जनता को स्थायीरूप से छलने के लिए स्वयं को ऐसा प्रदर्शित करता है जैसे उसने काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद एवं मात्सर्य को जीत लिया है, अभिमान से पूर्णतया रहित हो गया है, मनु के द्वारा बताये गये प्रजापालन सम्बन्धी दुर्गम मार्गों का अनुयायी हो गया है समस्त प्रकार के मानवसुलभ दोषो से वैराग्य धारण कर लिया है। अपनी उदारता को प्रकट करते हुए, नौकरों को मित्रवत् मित्रों को बन्धुवत और बन्धुओ को मानों राजा की भाँति प्रदर्शित करने लगा है। इन कर्मों से वह अपने अत्यन्त निर्मल यश को फैलाने में लगा हुआ है। दुर्योधन की इस दशा का उल्लेख करते हुए महाकवि भारवि ने एक अत्यन्त सूक्ष्म विवेचन किया कि महात्माओं के साथ विरोध भी दुष्टों के साथ की गयी मित्रता से कहीं बहुत ही उत्तम है। भला दुर्योधन में उपर्युक्त गुणों की प्रवृत्ति कभी सोची भी नहीं जा सकती. परन्तु युधिष्ठिर के साथ विरोध के कारण उसने उपर्युक्त महनीय गुणों को धारण कर लिया है। वनेचर के अनुसार दुर्योधन सम्प्रति एक अत्यन्त पुरुषार्थी और कुशल साधक के रूप में प्रतीत होता है। वह समय का यथायोग्य विभाजन करके धर्म, अर्थ और काम को अनासक्त रूप से इस तरह धारण करता है कि वो मानो परस्पर मित्र हो गये हैं और उसकी उन्नति के मार्ग में किसी भी प्रकार बाधक सिद्ध नहीं होते।

वह साम, दाम, दण्ड और भेद इन उपायों के प्रयोग में परम पण्डित है। जिससे वह मधुरवचन बोलता है उन्हें धन-धान्य से सत्कृत भी करता है। जिन्हें धन इत्यादि प्रदान करता है. उन्हें विशेष आदर और सम्मान भी देता है और कभी भी किसी अपात्र को सम्मानित नहीं करता है। एक न्यायप्रिय राजा के रूप में दुर्योधन विधि की अवहेलना करने वाले शत्रु और पुत्र में भी समान दृष्टि रखता है। लोग अथवा क्रोध से प्रभावित होकर कभी भी अन्याय का आचरण नहीं करता है, अपितु धर्माधिकारियों के द्वारा उपदिष्ट दण्ड-विधान को निष्पक्ष रूप से व्यवहृत करता है। दुर्योधन जहाँ साम, दाम और दण्ड के प्रयोग में परम प्रवीण है, वही भेद-कौशल में भी उसकी कोई तुलना नहीं है। जहाँ एक ओर उसके अभिन्न मित्र उसके साथ है. वहीं दूसरी ओर शत्रुओं के शत्रुओं को भी उसने मित्र बना लिया है और अभ्यन्तर रूप से सशकित होता हुआ भी नि शकवत् आचरण करता है। वह अपने कर्मचारियों के प्रति भी सदैव कृतज्ञ कार्यसम्पदनोपरान्त उसके द्वारा प्रदत्त प्रभूत धनसम्पदायें ही उसकी कृतज्ञता को व्यक्त करती हैं। इस प्रकार दुर्योधन के द्वारा सतत् प्रयुक्त उपायों के प्रयोग मानो परस्पर सङ्घर्ष करके भी दुर्योधन को अत्यन्त समृद्धिशाली बनाते हैं। वनेचर के अनुसार उसकी आर्थिक स्थिति बड़ी सुदृढ है। प्राय अनेक अधीनस्थ राजाओं के द्वारा उपहारस्वरूप प्रदत्त गजराजों और अश्वों की भीड़ से उसका प्राङ्गण अत्यन्त पड़िकल बना रहता है। राज्य की कृषि व्यवस्था भी सुन्दर है, कृत्रिम नहर आदि के रहते कृषकगण कभी भी बादलों की ओर उन्मुख नहीं होते और अल्प परिश्रम से ही भरपूर अन्न उगाकर प्रसन्न रहते हैं। निर्वाध गति से शासन करते हुए अत्यन्त यशस्वी और उदार तथा दयालु दुर्योधन के राज्य में पृथ्वी स्वत उसे समृद्धिशाली बनाये रहती है। महान वीर, सम्मानित और दुर्योधन के द्वारा प्रदत्त प्रभूत धन के कारण तृप्त यशस्वी, धनुर्धारी सैनिकों मे कभी भी कोई दुष्प्रवृत्ति नहीं आती है। एक अत्यन्त समर्थ राजा के रूप मे दुर्योधन के लिए कुछ भी अकरणीय नहीं है। वह शत्रुओं को भयभीत करने के लिए क्रोध अथवा धनुष कभी नहीं धारण करता अपितु उसके भृकुटि विलासमात्र से उसके सद्गुणों से प्रभावित होकर अधीनस्थ राजाओं के द्वारा कण्ठहार की भाँति उसके आदेशों को स्वीकार किया जाता है। दुर्योधन परम धार्मिक है वह अपने अनुज दुःशासन को युवराज नियुक्त कर पुरोहित की अनुमति से निरन्तर यज्ञादि के अनुष्ठानों में लगा हुआ समुन्द्रपर्यन्त पृथ्वी का सम्राट है परन्तु धन्य है उसका बलवानों से किया गया विरोध जो आप सदृश शत्रु के स्मरणमात्र से महानधनुर्धर अर्जुन के पराक्रम को सोचकर उसे नतमस्तक कर देता है। अब अविलम्ब उसे परास्त करने की व्यवस्था और प्रयत्न आपको करना चाहिए। नहीं तो कहीं छल छदम से जीते गये राज्य के सञ्चालक उस दुर्योधन के प्रतीयमान सद्गुणों के कारण कुरु प्रदेश की जनता को उससे सहानुभूति न हो जाये। वनेचर के इस परामर्श की समाप्ति के साथ ही प्रथम सर्ग के सारांश का द्वितीय विन्यास सम्पन्न होता है।

सारांश के इस तृतीय विन्यास में वनेचर के द्वारा उक्त शत्रुओं के उत्कर्षविषयक असहनीय वृतान्त को युधिष्ठिर के मुख से सुनकर व्याकुल होती हुई स्वाभिमानिनी द्रौपदी युधिष्ठिर को बारम्बार अनेक प्रकार से इस विषम परिस्थिति के लिए उत्तरदायी मानती है और उन्हें अविलम्ब दुर्योधन से युद्ध छोड़ने के लिए प्रेरित करने मे कटु से कटु तर्कों और अनुचित आरोपों को लगाने में भी सड़्कोच नहीं करती है। उसका कथन है कि ऐसी परिस्थिति में भी यदि इन मायावियों के प्रति मायापूर्ण आचरण नहीं किया जाता, सफल क्रोध से युक्त होकर अपने अपमान का बदला नहीं लिया जाता तो निश्चय ही आपके शत्रु आपको कायर और भीरू समझकर पूर्णत विनष्ट कर देंगे। आपकी इस विचित्र प्रकार की चित्तवृत्ति मेरी समझ में नहीं आ रही है क्योंकि ऐश्वर्य और वैभव में रहने वाले पराक्रमी अपने अनुजों और स्वयं अपनी भी वनवास में होती दुर्गति आपकी चित्तवृत्ति को बलात् युद्ध के लिए क्यों प्रेरित नहीं करती है। वंशपरम्परा से प्राप्त अनेक महारथी, स्ववंशज राजाओं के द्वारा रक्षित राज्य को अपने हाथों से अनायास ही गवाँ देने वाले आपके समान कोई भी मनस्वी राजा नहीं हो सकता। इस परम विचित्र आपकी चित्तवृत्ति को देखकर मेरा चित्त व्याकुल हो गया है। अतएव यदि शान्ति को छोड़कर शत्रुओं के वध के लिए आप शस्त्र नहीं उठाते, इस प्रकार के अत्यन्त दुःसह अपमान को प्राप्त करके यदि क्रोध में नहीं आते तो मनस्विता के लिए इस संसार में अब कोई आश्रय नहीं है। तब तो राजचिन्ह धनुष का परित्याग करके पराक्रम-विहीन होकर और जटाधारी बनकर अत्यन्त क्षमावान् कहलाने के लिए इस जङ्गल में केवल पूजा-पाठ करना ही उचित होगा। अपने मन की भड़ास को निकाल कर और पुनः दुष्टमनोव्याओं के कारण कहे गये कटु वचनों के प्रति क्षमायाचना करके शान्त होती हुई द्रौपदी युधिष्ठिर की साम्राज्यलक्ष्मी को पुनः प्राप्त करने की कामना से युक्त होकर प्रथम सर्ग के इस तृतीय विन्यास को समाप्त करती हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- भूगोल एवं खगोल विषयों का अन्तः सम्बन्ध बताते हुए, इसके क्रमिक विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- भारत का सभ्यता सम्बन्धी एक लम्बा इतिहास रहा है, इस सन्दर्भ में विज्ञान, गणित और चिकित्सा के क्षेत्र में प्राचीन भारत के महत्वपूर्ण योगदानों पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- निम्नलिखित आचार्यों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये - 1. कौटिल्य (चाणक्य), 2. आर्यभट्ट, 3. वाराहमिहिर, 4. ब्रह्मगुप्त, 5. कालिदास, 6. धन्वन्तरि, 7. भाष्कराचार्य।
  5. प्रश्न- ज्योतिष तथा वास्तु शास्त्र का संक्षिप्त परिचय देते हुए दोनों शास्त्रों के परस्पर सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- 'योग' के शाब्दिक अर्थ को स्पष्ट करते हुए, योग सम्बन्धी प्राचीन परिभाषाओं पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आयुर्वेद' पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  8. प्रश्न- कौटिलीय अर्थशास्त्र लोक-व्यवहार, राजनीति तथा दण्ड-विधान सम्बन्धी ज्ञान का व्यावहारिक चित्रण है, स्पष्ट कीजिए।
  9. प्रश्न- प्राचीन भारतीय संगीत के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  10. प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक भारतीय दर्शनों के नाम लिखिये।
  11. प्रश्न- भारतीय षड् दर्शनों के नाम व उनके प्रवर्तक आचार्यों के नाम लिखिये।
  12. प्रश्न- मानचित्र कला के विकास में योगदान देने वाले प्राचीन भूगोलवेत्ताओं के नाम बताइये।
  13. प्रश्न- भूगोल एवं खगोल शब्दों का प्रयोग सर्वप्रथम कहाँ मिलता है?
  14. प्रश्न- ऋतुओं का सर्वप्रथम ज्ञान कहाँ से प्राप्त होता है?
  15. प्रश्न- पौराणिक युग में भारतीय विद्वान ने विश्व को सात द्वीपों में विभाजित किया था, जिनका वास्तविक स्थान क्या है?
  16. प्रश्न- न्यूटन से कई शताब्दी पूर्व किसने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त बताया?
  17. प्रश्न- प्राचीन भारतीय गणितज्ञ कौन हैं, जिसने रेखागणित सम्बन्धी सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया?
  18. प्रश्न- गणित के त्रिकोणमिति (Trigonometry) के सिद्धान्त सूत्र को प्रतिपादित करने वाले प्रथम गणितज्ञ का नाम बताइये।
  19. प्रश्न- 'गणित सार संग्रह' के लेखक कौन हैं?
  20. प्रश्न- 'गणित कौमुदी' तथा 'बीजगणित वातांश' ग्रन्थों के लेखक कौन हैं?
  21. प्रश्न- 'ज्योतिष के स्वरूप का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  22. प्रश्न- वास्तुशास्त्र का ज्योतिष से क्या संबंध है?
  23. प्रश्न- त्रिस्कन्ध' किसे कहा जाता है?
  24. प्रश्न- 'योगदर्शन' के प्रणेता कौन हैं? योगदर्शन के आधार ग्रन्थ का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  25. प्रश्न- क्रियायोग' किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- 'अष्टाङ्ग योग' क्या है? संक्षेप में बताइये।
  27. प्रश्न- 'अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस' पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  28. प्रश्न- आयुर्वेद का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  29. प्रश्न- आयुर्वेद के मौलिक सिद्धान्तों के नाम बताइये।
  30. प्रश्न- 'कौटिलीय अर्थशास्त्र' का सामान्य परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्य क्या है? अर्थात् काव्य की परिभाषा लिखिये।
  32. प्रश्न- काव्य का ऐतिहासिक परिचय दीजिए।
  33. प्रश्न- संस्कृत व्याकरण का इतिहास क्या है?
  34. प्रश्न- संस्कृत शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई? एवं संस्कृत व्याकरण के ग्रन्थ और उनके रचनाकारों के नाम बताइये।
  35. प्रश्न- कालिदास की जन्मभूमि एवं निवास स्थान का परिचय दीजिए।
  36. प्रश्न- महाकवि कालिदास की कृतियों का उल्लेख कर महाकाव्यों पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- महाकवि कालिदास की काव्य शैली पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- कालिदास से पूर्वकाल में संस्कृत काव्य के विकास पर लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- महाकवि कालिदास की काव्यगत विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- महाकवि कालिदास के पश्चात् होने वाले संस्कृत काव्य के विकास की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- महर्षि वाल्मीकि का संक्षिप्त परिचय देते हुए यह भी बताइये कि उन्होंने रामायण की रचना कब की थी?
  42. प्रश्न- क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि माघ में उपमा का सौन्दर्य, अर्थगौरव का वैशिष्ट्य तथा पदलालित्य का चमत्कार विद्यमान है?
  43. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास के सम्पूर्ण जीवन पर प्रकाश डालते हुए, उनकी कृतियों के नाम बताइये।
  44. प्रश्न- आचार्य पाणिनि का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  45. प्रश्न- आचार्य पाणिनि ने व्याकरण को किस प्रकार तथा क्यों व्यवस्थित किया?
  46. प्रश्न- आचार्य कात्यायन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  47. प्रश्न- आचार्य पतञ्जलि का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  48. प्रश्न- आदिकवि महर्षि बाल्मीकि विरचित आदि काव्य रामायण का परिचय दीजिए।
  49. प्रश्न- श्री हर्ष की अलंकार छन्द योजना का निरूपण कर नैषधं विद्ध दोषधम् की समीक्षा कीजिए।
  50. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास रचित महाभारत का परिचय दीजिए।
  51. प्रश्न- महाभारत के रचयिता का संक्षिप्त परिचय देकर रचनाकाल बतलाइये।
  52. प्रश्न- महाकवि भारवि के व्यक्तित्व एवं कर्त्तव्य पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- महाकवि हर्ष का परिचय लिखिए।
  54. प्रश्न- महाकवि भारवि की भाषा शैली अलंकार एवं छन्दों योजना पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- 'भारवेर्थगौरवम्' की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- रामायण के रचयिता कौन थे तथा उन्होंने इसकी रचना क्यों की?
  57. प्रश्न- रामायण का मुख्य रस क्या है?
  58. प्रश्न- वाल्मीकि रामायण में कितने काण्ड हैं? प्रत्येक काण्ड का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  59. प्रश्न- "रामायण एक आर्दश काव्य है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  60. प्रश्न- क्या महाभारत काव्य है?
  61. प्रश्न- महाभारत का मुख्य रस क्या है?
  62. प्रश्न- क्या महाभारत विश्वसाहित्य का विशालतम ग्रन्थ है?
  63. प्रश्न- 'वृहत्त्रयी' से आप क्या समझते हैं?
  64. प्रश्न- भारवि का 'आतपत्र भारवि' नाम क्यों पड़ा?
  65. प्रश्न- 'शठे शाठ्यं समाचरेत्' तथा 'आर्जवं कुटिलेषु न नीति:' भारवि के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  66. प्रश्न- 'महाकवि माघ चित्रकाव्य लिखने में सिद्धहस्त थे' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  67. प्रश्न- 'महाकवि माघ भक्तकवि है' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  68. प्रश्न- श्री हर्ष कौन थे?
  69. प्रश्न- श्री हर्ष की रचनाओं का परिचय दीजिए।
  70. प्रश्न- 'श्री हर्ष कवि से बढ़कर दार्शनिक थे।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  71. प्रश्न- श्री हर्ष की 'परिहास-प्रियता' का एक उदाहरण दीजिये।
  72. प्रश्न- नैषध महाकाव्य में प्रमुख रस क्या है?
  73. प्रश्न- "श्री हर्ष वैदर्भी रीति के कवि हैं" इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  74. प्रश्न- 'काश्यां मरणान्मुक्तिः' श्री हर्ष ने इस कथन का समर्थन किया है। उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  75. प्रश्न- 'नैषध विद्वदौषधम्' यह कथन किससे सम्बध्य है तथा इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- 'त्रिमुनि' किसे कहते हैं? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- महाकवि भारवि का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी काव्य प्रतिभा का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- भारवि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  79. प्रश्न- किरातार्जुनीयम् महाकाव्य के प्रथम सर्ग का संक्षिप्त कथानक प्रस्तुत कीजिए।
  80. प्रश्न- 'भारवेरर्थगौरवम्' पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  81. प्रश्न- भारवि के महाकाव्य का नामोल्लेख करते हुए उसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- किरातार्जुनीयम् की कथावस्तु एवं चरित्र-चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- किरातार्जुनीयम् की रस योजना पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
  85. प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य-कला की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- 'वरं विरोधोऽपि समं महात्माभिः' सूक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
  87. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए ।
  88. प्रश्न- कालिदास की जन्मभूमि एवं निवास स्थान का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- महाकवि कालिदास की कृतियों का उल्लेख कर महाकाव्यों पर प्रकाश डालिए।
  90. प्रश्न- महाकवि कालिदास की काव्य शैली पर प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि कालिदास संस्कृत के श्रेष्ठतम कवि हैं।
  92. प्रश्न- उपमा अलंकार के लिए कौन सा कवि प्रसिद्ध है।
  93. प्रश्न- अपनी पाठ्य-पुस्तक में विद्यमान 'कुमारसम्भव' का कथासार प्रस्तुत कीजिए।
  94. प्रश्न- कालिदास की भाषा की समीक्षा कीजिए।
  95. प्रश्न- कालिदास की रसयोजना पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- कालिदास की सौन्दर्य योजना पर प्रकाश डालिए।
  97. प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य' की समीक्षा कीजिए।
  98. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए -
  99. प्रश्न- महाकवि भर्तृहरि के जीवन-परिचय पर प्रकाश डालिए।
  100. प्रश्न- 'नीतिशतक' में लोकव्यवहार की शिक्षा किस प्रकार दी गयी है? लिखिए।
  101. प्रश्न- महाकवि भर्तृहरि की कृतियों पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- भर्तृहरि ने कितने शतकों की रचना की? उनका वर्ण्य विषय क्या है?
  103. प्रश्न- महाकवि भर्तृहरि की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।
  104. प्रश्न- नीतिशतक का मूल्यांकन कीजिए।
  105. प्रश्न- धीर पुरुष एवं छुद्र पुरुष के लिए भर्तृहरि ने किन उपमाओं का प्रयोग किया है। उनकी सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
  106. प्रश्न- विद्या प्रशंसा सम्बन्धी नीतिशतकम् श्लोकों का उदाहरण देते हुए विद्या के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  107. प्रश्न- भर्तृहरि की काव्य रचना का प्रयोजन की विवेचना कीजिए।
  108. प्रश्न- भर्तृहरि के काव्य सौष्ठव पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- 'लघुसिद्धान्तकौमुदी' का विग्रह कर अर्थ बतलाइये।
  110. प्रश्न- 'संज्ञा प्रकरण किसे कहते हैं?
  111. प्रश्न- माहेश्वर सूत्र या अक्षरसाम्नाय लिखिये।
  112. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए - इति माहेश्वराणि सूत्राणि, इत्संज्ञा, ऋरषाणां मूर्धा, हलन्त्यम् ,अदर्शनं लोपः आदि
  113. प्रश्न- सन्धि किसे कहते हैं?
  114. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए।
  115. प्रश्न- हल सन्धि किसे कहते हैं?
  116. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए।
  117. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए।

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